डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
एक समय में जहां खेती.बाड़ी को ही जीवन का हिस्सा बनाया गया था, वही समय बदलने के साथ शिक्षा जीवन का अभिन्न अंग बन गया। वहीं अब आधुनिक युग के चलते खेलकूद को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय लेबल पर खेला जाता है, जिसमें सैकड़ों खिलाड़ी अपने अंदर छिपी प्रतिभा को निखारने का प्रयास करते हैं। ऐसे ही खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिमा को उभार कर देश का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात किया है। ऐसे ही पिथौरागढ़ जिला देश को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने वाला गढ़ रहा है। पिथौरागढ़ में आयरन वॉल ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात फुटबॉल खिलाड़ी त्रिलोक सिंह बसेड़ा सहित 50 से अधिक ऐसे खिलाड़ी पैदा हुए हैं, जिन्होंने इस सीमांत क्षेत्र का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। फुटबाल में अग्रणी स्थान रखने वाले सोरघाटी पिथौरागढ़ ने देश को अव्वल दर्जे के फुटबालर दिए हैं।
वर्ष 1962 में एशिया चैंपियन भारतीय फुटबाल टीम के सदस्य रहे सोरघाटी के स्वर्गीय त्रिलोक सिंह बसेड़ा का फुटबाल के खेल में इतना जबरदस्त होल्ड था कि उन्हें आयरन वॉल ऑफ इंडिया लोहे की दीवार के नाम से फुटबाल की दुनिया में जाना जाता था। उस समय की एशियन चैंपियन भारतीय टीम के भारत के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू भी कायल थे। जिले के तमाम फुटबालर राष्ट्रीय स्तर नामी क्लबों से खेल चुके हैं।
18 अक्तूबर 1934 को देवलथल के एक छोटे से गांव भंडारीगांव में किसान लक्ष्मण सिंह बसेड़ा और कौशल्या बसेड़ा के घर में जन्मे त्रिलोक बसेड़ा को बचपन से ही फुटबाल खेलने का शौक था। 16 वर्ष की उम्र में वर्ष 1950 में बसेड़ा सेना के ईएमई इलेक्ट्रॉनिकल एंड मेकेनिकल इंजीनियर्स कोर में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद ही उनका चयन ईएमई की फुटबाल टीम में हो गया और देखते ही देखते उन्होंने फुटबाल में महारत हासिल कर ली। उन्हें भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया। बसेड़ा वर्ष 1962 में जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का प्रमुख हिस्सा थे। बसेड़ा ने चार एशियन प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1958 में ऑल इंडिया हीरोज टूर्नामेंट, उसी साल संतोष ट्राफी की विजेता टीम के बसेड़ा प्रमुख खिलाड़ी थे। 29 जनवरी 1979 को सेना में कार्यरत रहते हुए लंबी बीमारी के बाद सिकंदराबाद में 45 साल की उम्र में बसेड़ा का निधन हो गया।
इतनी बड़ी उपलब्धियों के बाद भी आयरन वॉल के नाम से विख्यात बसेड़ा को कोई नेशनल पुरस्कार न मिल सका। लंबी लड़ाई के बाद वर्ष 2009 में राज्य सरकार ने पिथौरागढ़ शहर के भाटकोट में स्वर्गीय बसेड़ा की धर्मपत्नी राधिका बसेड़ा को एक नाली जमीन दी। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने मरणोपरांत खेल रत्न पुरस्कार से बसेड़ा को नवाजा। खेल के आलावा त्रिलोक सिंह बसेड़ा ने 1962, 1965, 1971 के युद्धों में भाग लिया। त्रिलोक सिंह बसेड़ा का निशाना भी अचूक था। खेल के मैदान में लगी एक सामान्य चोट ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया की फुटबाल का यह महान खिलाड़ी 45 वर्ष की उम्र में ही सेना में रहते हुये देश को अलविदा कह गया। त्रिलोक सिंह बसेड़ा की स्मृति में देवलथल जीआईसी का नाम त्रिलोक सिंह बसेड़ा जीआईसी किया गया। 2014 में उत्तराखंड सरकार ने त्रिलोक सिंह बसेड़ा को मरणोपरांत देवभूमि उत्तराखंड रत्न पुरूस्कार दिया गया।