डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड को देव भूमि यानी देवों की भूमि कहा जाता है क्योंकि यहां ऐसे कई मंदिर स्थित हैं। जो अपने में कई प्रकार के रहस्य समेटे हुए हैं। माता भद्रकाली का ये धाम बागेश्वर जिले में महाकाली के स्थान कांडा से करीब 15 किलोमीटर दूर भद्रपुर नाम के गांव में स्थित है। कहा जाता है, इस मंदिर की पूजा खासतौर पर नाग कन्यायें करती है। शाण्डिल्य ऋषि के प्रसंग में श्री मूल नारायण की कन्या ने अपनी सखियों के साथ मिलकर इस स्थान की खोज की। भद्रपुर में ही कालिय नाग के पुत्र भद्रनाग का वास कहा जाता है। भद्रकाली इनकी ईष्ट है। माता भद्रकाली का प्राचीन मंदिर करीब 200 मीटर की चौड़ाई के एक बड़े भूखंड पर अकल्पनीय सी स्थिति में स्थित है।
इस भूखंड के नीचे भद्रेश्वर नाम की सुरम्य पर्वतीय नदी 200 मीटर गुफा के भीतर बहती है। गुफा में बहती नदी के बीच विशाल शक्ति कुंड कहा जाने वाला जल कुंड भी है, जबकि नदी के ऊपर पहले एक छोटी सी अन्य गुफा में भगवान शिव लिंग स्वरूप में तथा उनके ठीक ऊपर भू.सतह में माता भद्रकाली माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली की तीन स्वयंभू प्राकृतिक पिंडियों के स्वरूप में विराजती यहां तीन सतहों पर तीनों लोकों के दर्शन एक साथ होते हैं। नीचे नदी के सतह पर पाताल लोक, बीच में शिव गुफा और ऊपर धरातल पर माता भद्रकाली के दर्शन एक साथ होते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार माता भद्रकाली का यह अलौकिक धाम करीब दो हजार वर्ष से अधिक पुराना बताया जाता है। भद्रकाली गांव के जोशी परिवार के लोग पीढ़ियों से इस मंदिर में नित्य पूजा करते.कराते हैं।
श्रीमद देवी भागवत के अतिरिक्त शिव पुराण और स्कन्द पुराण के मानस खंड में भी इस स्थान का जिक्र आता है, कहते हैं कि माता भद्रकाली ने स्वयं इस स्थान पर 6 माह तक तपस्या की थी। यहाँ नवरात्र की अष्टमी तिथि को श्रद्धालु पूरी रात्रि हाथ में दीपक लेकर मनवांछित फल प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं। कहते हैं इस स्थान पर शंकराचार्य के चरण भी पड़े थे। अंग्रेजों ने भी इस स्थान को अत्यधिक धार्मिक महत्व का मानकर गूठ यानी कर रहित घोषित किया था। आज भी यहां किसी तरह का शुल्क नहीं लिया जाता है। माता भद्रकाली भगवान श्रीकृष्ण की कुलदेवी यानी ईष्टदेवी थीं। कम ही लोग जानते हैं कि देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं अंचल में एक ऐसा ही दिव्य एवं अलौकिक विरला धाम मौजूद है, जहां माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली एक साथ एक स्थान पर विराजती हैं।
इस स्थान को माता के 51 शक्तिपीठों में से भी एक माना जाता है। शिव पुराण में आये माता भद्रकाली के उल्लेख के आधार पर श्रद्धालुओं का मानना है कि महादेव शिव द्वारा आकाश मार्ग से कैलाश की ओर ले जाये जाने के दौरान यहां दक्षकुमारी माता सती की मृत देह का दांया गुल्फ यानी घुटने से नीचे का हिस्सा गिरा था। माता भगवती का प्राचीन मंदिर लगभग 200 मीटर की चौड़ाई के एक बड़े भूखंड मै स्थित है, जिसे भद्रकाली गुफा कहा जाता है। इस गुफा के अंदर एक पवित्र नदी बहती है। जो कि विशाल शक्ति कुंड के नाम से जानी जाती है। गुफा के ठीक बाहर से एक एक विशाल झरना है जो कि इस जगह को और आकर्षित बनाता है भद्रकाली के उत्तर में पिंगल नाग, पूर्व में बेरीनागएपश्चिम में धवल नाग का मंदिर है। पौराणिक काल में नाग देवता भी भद्रकाली की ही उपासना करते थे। क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यहां सुंदर गुफा है व झरनों के साथ ही बहुत से दर्शनीय स्थल हैं। किंतु परिवहन और ठहरने की उचित व्यवस्था यहाँ नही है जिस कारण पर्यटन का विकास नही हो पा रहा है, यहाँ बहुत लम्बी व सुंदर गुफा है, जहाँ प्रकाश की कोई व्यवस्था नही है और ना ही गुफा के भीतर जाने वाले रास्ते सही है, जबकि यहाँ दूर दूर से क्षेत्रीय पर्यटक पंहुचता है पर यहाँ होने वाली असुविधा के कारण निराश है और भद्रकाली मंदिर की छोटी गुफा में बहुत तंग रास्ते है प्रसासन द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए।
संसाधनों के अभाव में अपनी दार्शनिक पहचान खोती बागेश्वर जनपद की भद्रकाली मंदिर एंव उसकी प्राकृतिक गुफा है जब पूरे भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो वे सब जगह से कर्ज लेते थेण् लेकिन इस स्थान के धार्मिक महत्व को मानकर इस स्थान को गूठ यानी कर रहित घोषित किया थाण्जिस कारण आज भी यहां कोई शुल्क नहीं लिया जाता हैण् मां भद्रकाली की पूजा सरस्वतीए लक्ष्मी और मां काली के स्वरूप में की जाती है।